सरकार के उद्देश्य व कर्तव्य
नई सरकार ने ऐसे हालात में सत्ता सम्भाली है कि जब देश राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। आम आदमी राजनीतिक व्यवस्था में तेजी से विश्वास खोता जा रहा है, जो 1975 से भारी दबाव की स्थिति में रही है। सरकार का पहला काम लोकतंत्र के प्रति जनता के खोये विश्वास को पुनः स्थापित करना है, विशेषकर इसकी उस योग्यता में, जिसके जरिये तात्कालिक और ज्वलन्त समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है।
सरकार को श्रम-साध्य प्रयास से लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को सही अर्थाें में स्थापित करते हुए, इस देश की जनता के भाग्य को बदलने के लिये तेजी से प्रयास करना होगा। नागरिकों की स्वतंत्रता और स्वत्वाधिकारों की सुरक्षा तथा न्यायपालिका की आजादी को सुरक्षित करना एवं उसे प्रोत्साहित करने का दायित्व सरकार को होगा।
हर चीज से ऊपर उठते हुए सरकार स्वच्छ और ऐसे सक्षम प्रशासन की बहाली सुनिश्चित करेगी, जिस प्रशासन में जन-कार्याें के दायित्व से जुड़े जनसेवक न केवल ईमानदार और निष्पक्ष ही होंगे, बल्कि पर्याप्त कुशलता और श्रमपूर्वक अपने कर्तव्य को अंजाम देंगे-एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था, जिसमें विलम्ब, बर्बादी और भ्रष्टाचार को कोई जगह नहीं होगी, अधिकारियों को आत्मविश्वास का ऐसा वातावरण प्रदान किया जायेगा, जिसमें उनके द्वारा लिये गय सदाशयी निर्णयों के लिये, उनका पूर्ण बचाव किया जायेगा।
इसी तरह यह सरकार महसूस करती है कि भ्रष्टाचार ऊपर से शुरू होता है और नीचे की ओर फैलता है। ऐसी स्थिति में सो समाज को भ्रष्ट करता है। जब तक हमारे देश के जनजीवन मंे ऊपर के स्तर पर व्यक्तिगत रूप से आकांक्षा न हो, तब तक प्रशासन में से भ्रष्टाचार को नहीं मिटाया जा सकता न ही सारभूत सरकार के उद्देश्य व कर्तव्य रूप से कम ही किया जा सकता है। यद्यपि तात्कालिक तौर पर इसका हल खुद जनता के हाथ में है, जिसे अपने नेताओं को चुनने का अधिकार है, इसके बावजूद सरकार इस बुराई को समूल नष्ट करने के लिये सभी कदम उठायेगी, जो सारे समाज को क्षय कर रही है।
बड़ी संख्या में देश की जनता में व्याप्त असुरक्षा और अलगाव की भावना को दूर करने के मामले को, सरकार उच्च प्राथमिकता देगी। हम सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियांे, अनुसूचित जनजातियों और विभिन्न भाषा-भाषी समूहों को इस बात के प्रति आश्वस्त करना चाहते हैं कि हम उनके हितों की सुरक्षा, कल्याण में वृद्धि और राष्ट्र को मजबूत बनाने की, पूर्ण इच्छाशक्ति से निर्देशित होंगे।
सभी पिछड़े वर्गाें, कमजोर तबकों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और जन-जातियों को पूर्ण सुरक्षा के प्रति आश्वस्त किया जायेगा और विकास हेतु उन्हें अधिकाधिक मदद दी जायेगी, ताकि समाज में वे अपनी सही भूमिका निबाह सकें। सरकार सभी अल्पसंख्यकों को आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक, सभी तरह के, विकास के अधिकाधिक अवसर देने के प्रति आश्वस्त करेगी।
मुद्रास्फीति, जो सबसे बड़ी बुराई है, का सामना देश कर रहा है और यह सरकार इस पर तुरन्त नियंत्रण पाने के लिये सभी आवश्यक कदम उठायेगी। जमाखोरों, मुनाफाखोरों, तस्करों और काला बाजारियों, साथ ही टैक्स-चोरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जायगी।
यद्यपि भारत प्राकृतिक वरदानों से सम्पन्न देश है और यहां महान संस्कृति, रीति-रिवाज, कार्य-कुशल तथा घोर परिश्रमी लोग हैं, इसके बावजूद यहां लगातार बनी रहने वाली सामाजिक और आर्थिक समस्याएं हैं। यह सरकार की प्राथमिकता और कर्तव्य होगा कि वह इस देश के सभी वर्गाें की सेवा करें तथा देश को नैतिक व आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाने का हर सम्भव उपाय करें और लोगों के जीवन-स्तर में सुधार करें। व्यापक रूप से फैली गरीबी का उम्मूलन करना होगा और प्रत्येक नागरिक को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को उपलब्ध कराना होगा। यह सरकार एहसास करती है कि मूल्यों और स्वप्नों के लिये, जनता द्वारा अपने वजूद के लिये किये जा रहे, विखंडित संघर्ष से ज्यादा उपहासास्पद और कुछ नहीं है। आज 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग गरीबी की सीमा-रेखा के नीचे जी रहे हैं, यहां तक कि उन्हें जरूरत भर भोजन भी नहीं मिलता। एक भूखे बच्चे की आंखों में निराशा के भावों को देखने से ज्यादा मर्मभेदी और कुछ नहीं हो सकता। हमारे लिये इससे अधिक और कुछ देशभक्ति पूर्ण उद्देश्य नहीं हो सकता कि हम यह सुनिश्चित करें कि कोई बच्चा भूखा नहीं सोयेगा, किसी परिवार को अगले दिन की रोटी जुटाने के प्रति अनिश्चितता की स्थिति नहीं होगी और किसी भी नागरिक का भविष्य और क्षमतायें कुपोषण से प्रभावित नहीं होंगी।
बेरोजगारी बढ़ोत्तरी पर है। इससे ज्यादा चिंताजनक कुछ नहीं होगा कि सुशिक्षित और रोजगार की चाह रखने वाला नौजवान खुद को बेकारी की स्थिति में पाये। हमें उन सभी के लिये रोजगार तलाशना होगा। वास्तव में, रोजगार एक प्रमुख औजार होना चाहिये, जिसके जरिये गरीबी का उन्मूलन करना होगा। इसीलिये, इस सरकार के कार्यक्रमों और नीतियों के तहत ‘रोजगार के विस्तार’ को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी जायेगी। जनसंख्या नियंत्रण-हेतु परिवार नियोजन तथा कल्याण एवं जनस्वास्थ्य सुधार कार्यक्रमों को उच्च प्राथमिकता दी जायेगी। कार्यक्रम को मजबूत बनाने के लिये प्रति हजार ग्रामीण जनसंख्या पर एक जन-स्वास्थ्य सेवक को नियुक्त किया जाएगा।
कृषि भारत का मूल उद्योग है, इसके विकास-हेतु मानव-श्रम, भूमि एवं प्राकृतिक स्त्रोतों के अधिकाधिक उपयोग के अवसर उपलब्ध कराते हुए, इसे पूर्ण प्रमुखता दी जाएगी। सरकार सुनिश्चित करेगी कि कृषकों को उनकी मेहनत का उचित प्रतिफल मिलेगा। अकेले कृषि बचतें ही (हमारी जनता के सामाजिक और आर्थिक सोच में तीव्रगामी बदलाव के संयोजन के साथ) गैर-कृषि व्यवसायों और सेवाओं के विकास मार्ग प्रशस्त करेंगी, बिना जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना सम्भव नहीं होगा।
यह सरकार जमींदारी के शिकंजे को, देश में यह आज भी जहां कहीं मौजूद है, पूर्ण क्षमता से तोड़ने को कटिबद्ध है। जमीन के प्रत्येक जोतदार को, मौजूदा कानूनों के तहत, स्थायी हक दिया जायेगा और राज्य के सीधे सम्पर्क में लाया जाएगा। किसी बिचैलिये या जमींदार को काश्तकार से खुदकाश्त के लिये जमीन पर पुनः कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और न ही किसान को अपनी जमीन पट्टे पर देने की अनुमति होगी, जब तक कि वह सशस्त्र सेवाओं का सदस्य न हो, मानसिक विकृति से पीडि़त न हो या कृषि-कर्म के लिये शारीरिक रूप से अपंग न हो। सिद्धांत के तौर पर तथा न्यायिक तौर पर भी, किसी देश में जमीनों पर कब्जा या वितरण इस सिद्धांत के तहत होना चाहिए कि किसी भी एक व्यक्ति को, उतने रकबे से अधिक जमीन न दी जाए, जो हमारी कृषि- तकनीक के तहत, एक औसत आदमी या श्रमिक की प्रबंधन क्षमता से ज्यादा हो और न ही किसी को इतने रकबे से कम जमीन दी जाए, जिससे प्राप्त प्रति एकड़, उपज, उस पर लगाये गय श्रम से कम हो। मौजूदा भूमि कब्जों पर हदबंदी को उपर्युक्त दो सीमाओं के बीच लागू करना हमारे मानव श्रम और भूमि-स्रोतों के प्रभावी उपयोग की दृष्टि से आवश्यक शर्त है। इस संदर्भ में 1972 से प्रभावी कानून दोषपूर्ण एवं न समाप्त होने वाले विवादों को जन्म देने वाला सिद्ध हुआ है, न ही राज्य सरकारों की मशीनरी इसे लागू करने की बहुत इच्छुक दिखी है। अतः यह सरकार सम्बन्धित राज्य-सरकारों में इसके प्रति जागृति पैदा करने का पूर्ण प्रयास करेगी कि गरीब किसानों को इसका लाभ पहुंच सके, जहां कहीं भूमि जोतों या भूमि हदबंदी से सम्बन्धित कानून दोषयुक्त हैं, उनके दोष को यथाशीघ्र दूर किया जाए। बीते वर्षाें में आय तथा सम्पत्तिगत विषमताएं बढ़ी हैं। हमारे शहरों और गांवों के बीच आर्थिक दरार और सांस्कृतिक खाई बढ़ी है। इस खतरनाक रवैये को रोकना होगा। यह सरकार कुछ निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत शहरों के विस्तार को रोकने हेतु प्रारम्भिक कदम उठायेगी।
ग्रामीण जनता को अधिकाधिक सुख-साधन और बेहतर जीवन सुविधाएं मुहैया कराकर, उसके आत्म-सम्मान को पुनः स्थापित किया जाएगा। जहां तक सम्भव होगा, ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि उद्यमों को स्थापित करने के लिये प्रत्येक प्रयास किया जायेगा। किन्तु प्राथमिक ध्यान कुटीर उद्योगों और हस्तशिल्प को पुनर्जीवित और पोषित करने पर दिया जाएगा, जो कि अकेले ही हमारे गांवों में व्याप्त बेरोजगारी तथा अर्द्ध-बेरोजगारी की स्थिति के उन्मूलन का रास्ता तैयार कर सकते हैं। सरकार कृषि मजदूरों को उचित मजदूरी सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक कदम उठायेगी।
यह सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में, अधिकाधिक सोद्देश्यात्मक कार्यक्रमों जैसे ‘काम के लिये अनाज तथा रोजगार गारंटी योजना‘ के जरिये, सामाजिक योगदान को पैदा करने के प्रयास करेगी। यह सरकार एक ऐसी आत्म-निर्भर औद्योगिक व्यवस्था के निर्माण हेतु प्रयासरत रहेगी, जो कि अधिकाधिक रोजगार की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगी, साथ ही समाज के विभिन्न वर्गाें में विकास के फलों के समान और न्यायपूर्ण वितरण की व्यवस्था करेगी। यह सरकार मौजूदा आर्थिक स्थितियों को संकट से उबारेगी और विकासमान अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने की दृष्टि से जन-परिवहन व्यवस्था, विद्युत, कोयला, स्टील, सीमेन्ट आदि की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाएगी।
देश के आर्थिक विकास में श्रमिक वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकार देश की आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु श्रमिक वर्ग से सम्वाद स्थापित करेगी। हमारी नैसर्गिक सोच के मुताबिक यदि देश की अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाना है, तो उद्योगों और कृषि, दोनों में, छोटी आर्थिक इकाइयों की स्थापना से मुंह नहीं चुराना होगा।यह ऐसी इकाइयाँ हैं, जो कि जमीन की प्रति इकाई और स्थिर पूंजी-निवेश के पीछे अधिकाधिक उत्पादन और रोजगार पैदा करती हैं और आर्थिक एवं सम्पत्तिगत विषमताओं को दूर करके, लोकतांत्रिक वातावरण का निर्माण करती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि सरकार सैद्धांतिक तौर पर बड़े उद्योगों की भूमिका के बारे में कोई अलगाववादी भावना रखती है। जहां कहीं जरूरी है, सार्वजनिक क्षेत्र में प्राथमिक और भारी उद्योगों की स्थापना जारी रहेगी, विशेष मामलों में मौजूदा निजी उद्योगों की स्थापना जारी रहेगी, विशेष मामलों में मौजूदा निजी उद्योगों का भी राष्ट्रीयकरण किया जाएगा, जहां राष्ट्रीय-हित में ऐसा करना जरूरी होगा। यह सरकार चुनावी कानूनों में भी ऐसे परिवर्तन करेगी, जो राजनैतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये जरूरी होंगे। सरकार प्रत्येक बच्चे के लिये प्राथमिक और रचनात्मक शिक्षा सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देगी तथा शिक्षा-प्रणाली में ऐसे बदलाव लायेगी, जो हमारे विकासशील समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे।
समृद्ध विरासत के समानुरूप भारत उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरूद्ध चल रहे संघर्षाें को समर्थन देगा। भारत, राष्ट्रीय हितों को सामने रखते हुए, गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति का अनुसरण जारी रखेगा। प्रत्येक भाषा को विकास के पूर्ण अवसर दिय जायेंगे। समाज के किसी भी वर्ग पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों द्वारा लोकसभा में दिये गये इस आश्वासन को पूरा मान दिया जाएगा, जिसके मुताबिक अंगे्रजी केन्द्र में सहायक राजभाषा के रूप में जारी रहेगी, जब तक कि गैर-हिन्दी भाषी राज्य ऐसा चाहेंगे।
उन नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जो देश को विज्ञापन और टेक्नोलाॅजी, नाभिकीय ऊर्जा सहित, के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के रास्ते पर ले जाएगें, प्रमुखता के साथ पहलकदमी ली जाएगी। सरकार वैज्ञानिक प्रतिभाओं का, अपनी ऊर्जा को राष्ट्र-निर्माण को समर्पित करने हेतु, आहवान करती है।
मैं राजनीतिक व अािर्थक सत्ता का विकेन्द्रीकरण चाहता हूँ।
- चौधरी चरण सिंह