चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन
चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति की उस परम्परा के अनमोल मोती हैं जो महात्मा गांधी से शुरू होती है और सरदार पटेल - डा0 लोहिया से होते हुए आगे बढ़ती है तथा जनता के हित एवं सिद्धान्तों के लिए किसी भी ताकत से टकराने से नहीं हिचकती। चरण सिंह को किसानों के दुःख - दर्द का सबसे बड़ा प्रवक्ता कहा जाय तो गलत न होगा। बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में किसानों के दो सबसे बड़े नेता हुए, एक सरदार बल्लभभाई पटेल और दूसरे चौधरी चरण सिंह। दोनों महात्मा गांधी से प्रभावित थे, दोनों देश के उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री बने, चौधरी साहब प्रधानमंत्री तक हुए दोनों ने लम्बा सतत संघर्षमय लोकजीवन जिया और देश के नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तर प्रदेश की राजनीति में 1967 से लेकर 1987 तक के दौर को चरण सिंह युग की संज्ञा दी जा सकती है। भले ही वे देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व उत्तर प्रदेश के दो बार के मुख्यमंत्री रहे हों लेकिन उनका नाम, कद, और प्रतिष्ठा हमेशा पदों से ऊपर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 1967 के पहले तक जितने भी मुख्यमंत्री हुए, केन्द्र द्वारा तय किए गए प्रतिनिधि होते थे। चौधरी साहब पहले मुख्यमंत्री थे जिन्हें केन्द्र का कर - कंदुक नहीं कहा जा सकता, उनके बाद यह रुतबा नेताजी (श्री मुलायम सिंह) को हासिल है।
चौधरी साहब का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को चौधरी मीर सिंह तथा नेत्र कौर के पुत्र के रूप में बुलन्दशहर के एक गाँव नूरपुर की एक साधारण सी झोपड़ी में हुआ था। उस समय देश अंग्रेजों का गुलाम था। बीसवीं सदी के साथ देश का राजनीतिक और सामाजिक वातावरण बदल रहा था। इनके जन्म के कुछ समय बाद पिता मीर सिंह को मेरठ जिला के भूपगढ़ी आना पड़ा जहाँ दोनों भाइयों श्याम सिंह व मान सिंह और बहनों रामदेवी व रसाल कौर का जन्म हुआ। इसके बाद चौधरी मीर सिंह जी को एक और प्रवास मेरठ के ही अन्य ग्राम भदौला में करना पड़ा फिर इसके पश्चात् वे यहीं टिक गए, इसलिए कुछ इतिहासकार चौधरी साहब का मूल स्थान भदौला को ही मानते हैं।
उनकी प्रारम्भिक शिक्षा नूरपुर व जानी गाँव में हुई। डिप्टी इन्स्पेक्टर आफ स्कूल उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें अगली कक्षा का भी इम्तहान देने को कहा। वे अगली कक्षा की भी परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर गए। प्राइमरी पास करने के बाद वे जिला राजकीय विद्यालय में अध्ययन करने मेरठ आए किन्तु बोर्डिग की फीस अधिक थी जो उनके अभिभावक उठा नहीं सकते थे, अन्ततोगत्वा माॅरल ट्रेनिंग स्कूल में विद्या अर्जन करने लगे। उनमें ज्ञान हासिल करने की भूख प्रारम्भ से रही। एक साल माॅरल स्कूल में पढ़ने के बाद 1914 में छठवीं कक्षा में दाखिल हो गए। वे विज्ञान के विद्यार्थी होकर भी साहित्य और इतिहास की पुस्तकों में विशेष रूचि लेते थे। उन पर इसी उम्र में लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी का असर दिखने लगा था। इसके बाद वे आगरा कालेज एफ.एस.सी. (विज्ञान) करने के लिए गए। उनकी मेधा और लगन से प्रभावित होकर मेरठ के प्रतिष्ठित चिकित्सक डाक्टर भूपाल सिंह 10 रुपया महीना वजीफा देने लगे। पाठ्यक्रम के अलावा वे समकालीन मैजिनी तथा गोल्डस्मिथ जैसे रचनाकारों का भी अध्ययन करते रहते थे। इसी बीच अंग्रेजी और हिन्दी में गांधी जी ने खिलाफत और असहयोग आंदोलन की घोषणा की, उन्होंने अंग्रेजी पढ़ाई और विदेशी वस्तुओं के परित्याग का आह्वान किया।
चौधरी साहब गांधीजी को अपना आदर्श मानते थे। उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और घर लौट आए। आन्दोलन वापस होने के पश्चात् घर वालों ने समझाया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद देश सेवा करना अधिक कारगार होगा। उन्होंने 1923 में आगरा कालेज से बी.एस.सी. प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया।