चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन
यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा फिर संगठन कांग्रेस के सहयोग से त्रिभुवन नारायण सिंह की सरकार 18 अक्टूबर 1970 को काबिज हुई, यह सरकार भी 4 अप्रैल 1971 को धराशायी हो गई। अब तक चौधरी साहब राजनीति के एक केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुके थे। 29 अगस्त 1974 को उन्होंने केन्द्रीय भूमिका निभाते हुए भारतीय लोकदल का गठन किया। पीलू मोदी, राजनारायण, बीजू पटनायक, रवि राय, कर्पूरी ठाकुर, प्रकाशवीर शास्त्री जैसे नेताओं ने चौधरी चरण सिंह जी को लोकदल का अध्यक्ष चुना। राजनीतिक झंझावतो के मध्य प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आपात काल आरोपित कर दिया। चौधरी साहब को गिरफ्तार कर तिहाड़ की काल-कोठरी में डाल दिया गया। आपात काल ने 1942 की जालिम ब्रिटानिया हुकूमत की याद दिला दी। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान कुल 60 हजार लोग बंदी बनाए गए थे जबकि आपातकाल में 1 लाख 21 हजार नेताओं व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया गया। नेताजी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, मेरी उम्र उस समय 20-21 वर्ष होगी, जेल में नेताजी को अखबार, साहित्य, भोजन आदि लेकर जाता था। आज भी वे दिन याद आते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। चरण सिंह जी को बी-क्लास श्रेणी में रखा गया था, गर्मी और बरसात में ऐसी स्थिति बन जाती थी कि कोई भी वहाँ एक पल न रह पाए। चौधरी साहब ने इस एकान्तवास का लाभ ज्योतिष की पुस्तकों को पढ़ने में लगाया। 8 फरवरी 1976 को जेल में अन्य साथियों प्रकाश सिंह बादल, नाना जी देशमुख, मदरलैण्ड के संपादक मलकानी आदि ने सभी विरोधी दलों को एक मंच पर आने के सन्दर्भ में सलाह मशविरा किया। इस दिशा में पहली गंभीर बैठक वार्ड नम्बर 14 में चौधरी साहब की अध्यक्षता में हुई। इस प्रकार एक विकल्प का बीजारोपड़ हुआ। चौहत्तर वर्षीय चरण सिंह के हौसले - हिम्मत और हनक पर कारावास तथा यातना का कोई असर नहीं हुआ लेकिन शरीर पर इस दमन का कुप्रभाव पड़ना स्वाभाविक था, वे अस्वस्थ हो गए। एमनेस्टी इंटरनेशनल के हस्तक्षेप और गिरते स्वास्थ्य के कारण उन्हें 7 मार्च 1976 में पैरोल पर रिहा किया गया। योद्धा हर जगह और हर परिस्थिति में योद्धा होता है, 23 मार्च को लोहिया जयंती तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह की शहादत के दिन उत्तर प्रदेश विधान सभा में उन्होंने अपने ऐतिहासिक भाषण में आपातकाल और तानाशाही का जमकर विरोध किया। उनके अदम्य साहस के समक्ष पूरी विधान सभा (उस समय विधान सभा अध्यक्ष वासुदेव सिंह, मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी व राज्यपाल डा0 मधु चेन्ना रेड्डी थे) छोटी लगने लगी थी, वे अचानक पूरे देश की आवाज बन गए। लोहिया का सूत्र मूत्र्तरुप लेते हुए दिखने लगा था। 11 अगस्त 1974 को बनी भारतीय क्रांति दल (पूर्व नाम जन कोंग्रेस ) 29 अगस्त 1974 स्वतंत्र पार्टी, संसोपा, उत्कल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक संघ किसान मजदूर पार्टी व पंजाबी खेती बारी यूनियन के साथ विलित होकर भारतीय लोक दल बनी, चरण सिंह जी इसके संस्थापक अध्यक्ष बने। चरण सिंह जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में रेखांकित किया कि, ‘‘27 वर्ष की स्वतंत्रता और देश में अपना शासन होने के बावजूद भी देश ऐसी अव्यवस्था में पहुँच गया है कि उसकी प्रतिष्ठा सबसे नीचे स्तर पर पहुँच गई है। आज बाहर के देश हमारे अंदरूनी मामलों में दखल दे रहे हैं और अनुशासनहीनता प्रत्येक कार्यालय और संस्था पर अड्डा जमाए हुए है। लगभग प्रत्येक वर्ग राष्ट्रीय हित को भुलाकर अपने व्यक्तिगत् स्वार्थ को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है। अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ने के साथ बेरोजगारी तेजी से बढ़ती चली जा रही है। आज भारत विश्व की आर्थिक सीढ़ी पर सबसे नीचे है। हमारे देश में करोड़ों लोगों को दो समय का खाना भी मिलना , भले ही वह रूखा-सूखा क्यों न हो, विलासिता की चीज बन गया है।’’ चरण सिंह जी इस सामाजिक-आर्थिक तस्वीर के लिए जिम्मेदार नीतियों और सरकार को बदलने के लिए बेहतर विकल्प देना चाहते थे। भारतीय क्रांति दल से जुड़ा एक और उल्लेखनीय तथ्य है कि बिहार के लब्धप्रतिष्ठ समाजवादी सोच के नेता बाबू महामाया सिंह के त्यागपत्र के बाद 23 मार्च 1969 को चौधरी साहब अध्यक्ष बने थे।