चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन
उस समय 63 हजार से भी अधिक वोटों से जीतना चमत्कार जैसा लग रहा था। 1985 के बाद चौधरी साहब का स्वास्थ्य भी साथ नहीं दे रहा था। लोकसभा चुनाव में पार्टी की पराजय से भी थोड़ा सा उत्साह व सक्रियता में कमी आना स्वाभाविक था। वे नेताजी को लेकर काफी आश्वस्त थे। उनकी धारणा बन गई थी कि उनके बाद नेताजी उनकी वैचारिक विरासत को विखरने नहीं देंगे। 29 मई 1987 को धरतीपुत्र चरण सिंह महाप्रयाण कर गए। उनका जीवन-दर्शन सतत् और रचनात्मक संघर्ष की एक महागाथा है जो ‘‘ सादा जीवन - उच्च विचार’’ की प्रेरणा देते हैं। चरण सिंह जी सिर्फ राजनेता या जननेता ही नहीं थे अपितु उनकी गणना एक अर्थशास्त्री व सामाजिक जीवन के मर्मज्ञ के रुप मेंभी की जाएगी। अर्थशास्त्री चरण सिंह के योगदान पर भी चर्चा जरुरी है। उनके अर्थशास्त्र के ज्ञान का लोहा बड़े-बड़े विद्वान भी मानते थे। जापान और चीन के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चरण सिंह की आर्थिक नीतियाँ गाँधी जी से प्रेरित, गाँव और गरीबों के अनुकूल, एशिया व भारत की सामाजिक- आर्थिक पृष्ठभूमि के अनुरूप और लोहिया के करीब थी जो उनके जीवन काल से भी अधिक प्रासंगिक प्रतीत होती हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र पर भारतीय अर्थनीति (India's Economic Policy) लिखी जिसका हिन्दी रुपान्तरण प्रो0 के.एस. राणा ने किया। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्याओं के कारणों और उनके निवारण का खाका तैयार किया गया है। चौधरी साहब ने अपने दोनों उपाधियों ‘‘धरतीपुत्र’’ और ‘‘लौहपुरुष’’ को चरितार्थ किया। चरण सिंह जी में जोखिम उठाने का अदम्य साहस था। वे ऐसे निर्णय लेने में भी नहीं हिचके जिसमें उन्हें और व्यक्तिगत् राजनीति को आघात पहुँच सकता था। इन्दिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण जी को राज्यसभा भेजकर पिटीशन दिलाया। जेल से छूटने के बाद आपातकाल के दौरान ही विधान सभा में तानाशाही के विरुद्ध जमकर बोला। कांग्रेस छोड़कर नए दल का गठन किया जबकि चाहते तो बड़ी आसानी से मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री बने रहते लेकिन संघर्ष और साहस उनके रक्त का अविरल प्रवाह था। गृहमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक अराजक और हठी आई. जी. को सेवा मुक्त किया तथा स्पष्ट निर्देश दिया कि किसी अफसर के यहाँ कोई सिपाही घरेलू काम नहीं करेगा, न उन्होंने स्वयं कभी पुलिसकर्मी से निजी कार्य करवाया। उन्होंने जनसभा में एक कलक्टर को खड़े - खड़े निलम्बित किया। उन्होंने लालफीताशाही व निरंकुश नौकरशाही पर कारगर लगाम लगाया। ऐसा नहीं कि वे अधिकारियों के प्रति पूर्वाग्रह रखते थे। एक ईमानदार ज्येष्ठ पुलिस अधीक्षक के अनुचित स्थानान्तरण के विरोध में गृहमंत्री के पद से इस्तीफा तक दे दिया। जनता सरकार बनने के बाद भ्रष्टाचार के कारण पेट्रोलियम सचिव को गिरफ्तार किया गया । शीर्ष के कई अधिकारियों ने यूनियन बना कर सरकार को अर्दब में लेना चाहा। चौधरी साहब ने दृढ़तापूर्वक गलत व्यक्ति को सजा देना सरकार का प्रशासनिक व नैतिक कत्र्तव्य बताया, और स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी। उनके भूमि सुधार सम्बन्धी कार्यों व नीति की खुले मन से प्रख्यात् अर्थशास्त्री व कृषि विशेषज्ञ वुल्फ लेजन्स्की ने तारीफ की। उन्होंने केन्द्रीय गृहमंत्री होते हुए सम्पूर्ण बजट का 33 फीसदी गाँवों की ओर मोड़ा। 1977 में जनता पार्टी की प्रथम बैठक में उन्होंने देश-विदेश की अर्थव्यवस्था का गहन अध्ययन कर 66 पृष्ठ की रिपोर्ट तैयार कर रखी थी जिसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा था कि भारत के लिए सहकारी खेती अनुपयुक्त और अव्यवहारिक है, कृषि को प्रोत्साहन देना चाहिए। प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने और प्रति एकड़ श्रमिक घटाने की आवश्यकता है। हमारे जमीन कम है अतः वैज्ञानिक उपकरणों से पैदावार बढ़ाई जाये। खेती की चकबंदी अनिवार्य है, इसलिए मध्यम किस्म के फार्म बनाये जायंे। एक व्यक्ति के पास 2.5 एकड़ से छोटी और 27 एकड़ से बड़ी जोत नहीं होनी चाहिए। औद्योगीकरण के आइने में पहले कुटीर उद्योग, फिर लघु उद्योग और अंततः भारी उद्योग को स्थान मिलना चाहिए। सम्पूर्ण बजट का 40 प्रतिशत कृषि पर व्यय किया जाये।