चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन
अमेरिका से लौटने के बाद वे ज्यादातर अस्वस्थ रहने लगे और 29 मई 1987 को अचानक अन्तिम यात्रा पर चले गए। उन्हें अपने पुत्र को अमेरीका भेजने के लिए 10 हजार रुपया कर्ज लेना पड़ा था। वे अक्सर गरीब छात्रों को पढ़ने-लिखने के लिए अमीर सहयोगियों से मदद दिलाते रहते थे। 30 मार्च 1966 का एक पत्र मेरी जानकारी में है जिसमें चौधरी साहब ने बड़ौत के नगर पालिका अध्यक्ष श्री प्रेमनारायण को पत्र लिखकर देवराज गिरी नाम के विद्यार्थी को 600 रुपए का चेक 50 रुपया माहवार के हिसाब से देने का निर्देश दिया है। उनके पहले हमेशा मंत्रीमण्डल का शपथ ग्रहण राजभवन के दरबार हाल में होता था, वे प्रथम मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने खुले मैदान में शपथ-ग्रहण समारोह करवाया। नेताजी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया। वर्तमान सरकार ने भी शपथ खुले मैदान में ली, मैंने खुद भी शपथ जनता के बीच आयोजित कार्यक्रम में लिया है। प्रारम्भिक दिनों की चर्चा है, पंडित जवाहर लाल नेहरु को उत्तर प्रदेश के मंत्रिमण्डल की सूची दिखाई गई, जिसमें चौधरी साहब का नाम नहीं था। इस पर पंडित जी बोले कि ‘‘उत्तर प्रदेश में कोई सरकार जिसमें चौधरी चरण सिंह नहीं होंगे, सुचारू रूप से नहीं चल पाएगी।’’ देखा जाय तो पंडित जी की विश्लेषणात्मक टिप्पणी सही थी। वे जीवनपर्यन्त उत्तर प्रदेश की राजनीति के शिखर-पुरुष और केन्द्र की धुरी रहे। उन्हें कृषक कुलपति कहा गया। उनके विचारों का व्यापक फलक भारत के बाहर तक फैला हुआ है। वे अनेक दृष्टियों और दृष्टिकोणों से असाधारण और विराट व्यक्ति थे। उन्होंने अपने लेखन के जरिए भारत की कृषि और किसानों की समस्याओं का विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत किया। उनका हर कदम तार्किक होता था। मार्च और अप्रैल 1938 में उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स में लेख लिखा जो ‘‘कृषि विपणन (एग्रीकल्चरल मार्केटिंग) के शीर्षक से प्रकाशित हुआ, ठीक एक साल बाद यू.पी. विधानसभा के सदस्य के रूप में विधानसभा में ‘‘एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट्स बिल’’ प्रस्तुत किया जिसमें कृषि उत्पादकों को व्यापारियों की खुली लूट से बचाने का प्रावधान किया गया। जमींदारी उन्मूलन के दृष्टिकोण से उनका काम हमेशा रेखांकित किया जाता रहेगा। उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि किसी देश की खुशहाली इस पर निर्भर करती है कि वह उपलब्ध भूमि का प्रयोग किस प्रकार करता है। भारत के लिए वे ऐसे उद्योगों के हियायती थे जिसमें पूँजी कम लगे और अधिक से अधिक श्रमिकों का समायोजन हो सके। जापान की तरह उन्होंने छोटी मशीनों पर आधारित अर्थतंत्र को बेहतर माना। उनकी ईमानदारी के मुरीद ‘‘चित्रलेखा’’ के उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा भी थे, जिन्होंने अपने लेख में अपने एक मित्र से जुड़े वाकया का उल्लेख किया है कि चौधरी साहब ने मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पंडित बलभद्र मिश्र को बुलाया और अपनी गाय देते हुए कहा कि मेरी आर्थिक स्थिति गाय पालने की नहीं है और किसान होने के कारण गाय बेच नहीं सकता, इसलिए आप ले जायंे। इससे दो तथ्य प्रकाश में आते हैं, एक तो चौधरी बेहद ईमानदार थे और दूसरे सांस्कृतिक मूल्यों का काफी सम्मान करते थे। वे निष्काम व निस्पृह कर्मयोगी थे। उनका व्यक्तित्व इन्द्रधनुषी था जिसमें जीवन के सभी रंग पूरी शिद्दत के साथ झलकते थे। चौधरी साहब गांधी के बाद सरदार पटेल को अपना आदर्श मानते थे। सरदार पटेल की स्मृतियों को स्थायी बनाने के लिए उन्होंने 31 अक्टूबर सन् 1967 को मेरठ में सरदार बल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय का शिलान्यास किया। उल्लेखनीय है कि 31 अक्टूबर 1875 को सरदार पटेल का जन्म हुआ था। सरदार पटेल की जयंती चौधरी साहब गांधी जयंती की तरह ही मनाते और मनवाते थे। वे अंत्योदय योजना के स्वप्नद्रष्टा थे, उन्होंने न केवल राजनेता अपितु अर्थशास्त्री के रूप में भी गांधीवाद की प्रस्थापनाओं को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।